शिवजी का वह चमत्कारी मंदिर जहाँ होती है मनोकामनाएं पूरी

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हिमाचल प्रदेश को हम उस की खूबसूरत वादियों बर्फ से ढके पहाड़ों और मनमोहन स्थानों के लिए जानते हैं परंतु बहुत कम लोग ही जानते हैं कि हिमाचल प्रदेश में बहुत सारे ऐसे धार्मिक स्थल भी हैं जो सिर्फ भारत में नहीं अपितु पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं | ऐसे ही धार्मिक स्थलों में से एक है बैजनाथ शिव मंदिर जो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में पालमपुर के पास में है |

वैसे तो पूरे वर्ष में यहां पर बहुत सारे लोग आते हैं जिनमें विदेशी पर्यटक एवं तीर्थयात्री भी शामिल हैं परंतु शिवरात्रि पर यहां का नजारा बहुत ही मनमोहक होता है | इस दिन यहां पर बहुत बड़ी संख्या में लोग आते हैं और भगवान शिव के दर्शन करते हैं | मंदिर के पास में ही एक नदी बहती है जिसे खीर गंगा के नाम से जाना जाता है ऐसी मान्यता है कि इस दिन वहां पर स्नान करने से बहुत अधिक लाभ होता है |

सभी श्रद्धालु सर्वप्रथम स्नान करते हैं उसके बाद भगवान शिवजी के दर्शन के लिए शिवलिंग की ओर अग्रसर होते हैं वहां वह शिवलिंग का पंचामृत से स्नान भी करवाते हैं तथा भगवान शिव को चढ़ाए जाने वाले बेलपत्र, फूल, भांग, धतूरा आदि अर्पित करते हैं | यहाँ की ऐसी मान्यता है की भगवन शिव के सिर्फ दर्शन से ही सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है |

मंदिर का इतिहास
कहा जाता है कि त्रेता युग में लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या कैलाश पर्वत पर की परंतु बहुत दिन तक तपस्या करने के बाद भी जब शिवजी उस पर प्रसन्न नहीं हुए तो रावण को बहुत अधिक क्रोध आया और उसने एक एक करके अपने सर भगवान शिव को चढ़ाने लगा | जैसे ही रावण अपना आखरी सर भगवान शिव को चढ़ाने वाला था उसी समय भगवान शिव वहां पर प्रकट हुए और रावण से वर मांगने को कहा | रावण ने कहा है भगवान शिव आप मुझे अत्यंत बलशाली बना दें एवं अपने स्वरूप को दो भागों में विभाजित कर शिवलिंग के रूप में लंका में विराजित हो जाएं |

रावण की यह बात सुनकर शिवजी मुस्कुराए और बोले तथास्तु परंतु उन्होंने रावण के सामने एक शर्त भी रखी की लंका जाते समय इन दोनों शिवलिंग को कहीं पर भी नीचे जमीन पर नहीं रखना अगर तुमने ऐसा किया तो मैं वहीं पर विराजित हो जाऊंगा | रावण ने तुरंत हां कर दी और बोला हे शिव जी मैं इस बात का पूरा ध्यान रखूंगा | इतना कहने के बाद भगवान शिव वहां से अंतर्ध्यान हो गए | उनके जाते ही वहां पर दो शिवलिंग प्रकट हो गए जिन्हें रावण ने उठा लिया |

रास्ते में जब रावण लंका की ओर जा रहा था तो उसे बीच रास्ते में लघुशंका होने का एहसास हुआ उसने इधर-उधर देखा कि अगर उसे कोई मिल जाए तो उसके हाथ में शिवलिंग देकर लघुशंका कर आए | थोड़ी दूर पर उसे एक ग्वाला मिला जिसका नाम “बैजू” था उसने उसे सारी बात समझा कर दोनों शिवलिंग हाथ में दे दिए | परन्तु शिव जी की माया के कारण उस ग्वाले ने उन शिवलिंग को वहीं धरती पर रख दिया और अपने पशु को चराने के चला गया | इस तरह दोनों शिवलिंग उसी जगह पर स्थापित हो गए | जिससे आज के समय में हम बैजनाथ मंदिर के नाम से जानते हैं |

मंदिर का रास्ता
बैजनाथ मंदिर तक रेल द्वारा दिल्ली से पठानकोट या चण्डीगढ़-ऊना तक पंहुचा जा सकता है, आगे का रास्ता बस, निजी वाहन व टैक्सी से पूरा किया जा सकता है । दिल्ली से पठानकोट और कांगड़ा जिले में गग्गल तक हवाई सेवा भी का भी श्रद्धालु उपयोग कर सकते है।